Saturday 25 April 2009

अशोक आन्द्रे

कब से

कब से खामोश खड़ा मैं
आकाश की ओर घूर रहा हूँ
निष्ठुर समय पास खड़ा
अट्ठ्हास कर रहा है
क्योंकि पहाड़ पिघल रहे हैं
उनके आस - पास की हरियाली को
घोट कर पी लिया है किसी ने
इसको देखने के लिए अभिशप्त हैं हम ।
खेत सूख चलें हे कंक्रीट के पेड़ों तले
उन पर खड़ा व्यक्ति नारों से पेट भर रहा है ,

सिक्के चलते नहीं , दौड़ते हैं
उसके पीछे दौड़ते - दौड़ते
थक गया है आदमी
इस व्यवस्था का क्या किया जाए
अंधकार सुनामी की तरह धमकाता है
सिर्फ भूख से बिलखते
बच्चे ही आभास देते हैं
शायद जिन्दगी अभी ख़त्म नहीं हुई है

संदेह और भय के बीहडों में कुछ खोजने
को प्रेरित करते हैं चंद शब्द
फिर भी क्यूँ अट्टहास करता है समय ,
और मजबूर करता है आकाश घूरने को
आख़िर कब तक घूरते रहेंगे हम
अपने समय के आकाश को


छूने के प्रयास में

अंतस के गहन अंधेरे में
सिद्धांतो के विशालकाय महल खड़े हैं
जिन्हें मेरे पूर्वजों ने कभी शब्दशिल्पी बन
निर्मित किया था
जिनकी ऊचाइयां अब सांझ ढले
जमीन छूने को आतुर दिखाई देती हैं
इस सब के बावजूद उन्नत शब्द भी
चीटियों की तरह रेंगते हैं मेरे अन्दर , और
बौने स्वरूपों में परिवर्तित हो
मेरे सामने से गुजरते हुए अदृश्य हो जाती हैं ।
अपनी गंध छितराई हवा में जरुर छोड़ जाती हैं
जिन्हें मेरे हाथ छूने के प्रयास में
अचिन्हित डोरों में उलझ कर
झूलने लगते हैं
समझने में असमर्थ
धरती के जीव - जंतुओं के साथ
आकाश छूते पेडों की ऊचाइयां
सिर झुकाने लगती हैं ,
सिद्धांतो के उन विशालकाय महलों के आगे
जहां लोग अपनी अधूरी आस्था को
अपनी ही जातियों की अंध मान्यताओं की शिला पर
खंडित होते देखने के बावजूद
बनाते हैं विश्वास के ढूह
और देखता हूँ खज़िआये कुत्ते
सुबह से शाम तक अपनी कुंकुआती
ध्वनीसे चारों दिशाओं में भटकते हैं
और समय उनकी लार सा रिसता रहता है
लेकिन अंधेरे रहस्यों में
आत्माओं का आवागमन रहता है जारी
बीत रही जिन्दगी झांकना चाहती है
कुछ इस तरह जैसे पत्तलों को चाटता कुत्ता ।
समझ नहीं आता चाटूं उन पत्तलों को
या फिर मैं चला जाऊं कुत्तों के वजूद में
या ढूंढू सिद्धांतो के विशालकाय महलों में
खोई तमाम दुरात्माओं को
जिन्हें चट कर लिया है
इन विशाल शब्द शिलाओं ने ,
सिद्धांतों के विशालकाय महलों के कंगूरे
फिर - फिर छूने लगें हैं
अंतस में फैली घाटी को
शायद इसी भ्रम में से ही तो मनुष्य को
खोज कर स्थापित करना है मुझे
ताकि वे सिद्धांतो के विशालकाय
महलों में बसे आस्थाओं के साथ
दिग - दिगंत तक स्थापित रह सकें

Thursday 16 April 2009