Saturday 9 November 2013

पी एन टंडन

ग़ज़ल


कहा है किसी ने ग़ज़ल आज लिख दो

मेरे मुस्कुराने का अंदाज़ लिख दो ।


किया खुशबुओं का बहुत ज़िक्र तुमने,

मेरे गेसुओं की महक आज लिख दो ।


वो काले से बादल में छुपता जो चन्दा,

चलो आज मेरी शर्म लाज लिख दो ।


जो तुमने सुनी थी वो कोयल की कूँकें,

मेरी मान लो मेरी आवाज़ लिख दो ।




ये जलती है शम्मा या जलता है कोई

मेरे तन बदन की जलन आज लिख दो ।


ज़माने के दर से न कहती जो धड़कन,

वही प्रेम की ऐ कलम आज लिख दो ।



होली के अवसर पर विरह व्यथा गीत


ओ मेरी प्यारी अलका तू भूली वादा कलका,

आँखें रोईं ऐसे जैसे खुला रह गया नलका ।



तेरी याद में भूखा सोया खाकर केवल डोसे,

छोड दिए गोभी के पराठे खाये नहीं समोसे ,

जली कटी बिन सुने नहीं है चैन मुझे इक पल का । ओ मेरी प्यारी



होली के मौके पर मैके गयी किया है धोखा,

लाल गुलाल लगा गयी गाल पे सलमा पा गयी मौका,

खिली जवानी हिला कलेजा बंद हो गया नलका । ओ मेरी प्यारी


आजा मेरी सोन चिरैया बजादे तबला दिलका,

बसा दे मेरी सूनी नगरी सलमा हो या अलका । ओ मेरी प्यारी

*******

मेरा जन्म अयोध्या के निकट टांडा में हुआ
मेरी शिक्षा वहीँ पर स्नातक स्तर तक हुई तथा 1965 में स्नातकोत्तर काशी विद्यापीठ वाराणसी से समाजशास्त्र में किया
हिंदी साहित्य में विशेष रूचि के कारण सन 1986 में मैंने हिंदी से एम.ए. भी किया
पर जीवन की भागम-भाग में साहित्यिक कार्य कुछ अधिक नहीं कर सका
अभी तक के अपने जीवन की उपलब्धिओं से संतुष्ट हूँ

जीवन के इस पड़ाव में अब जीवन को सही मायने में जीने की इच्छा रखता हूँ
साहित्य सेवा के माध्यम से दूसरों तक अपनी बात पहुंचाना तथा उनके लेखन से उनके विचार जानना और समझना चाहता हूँ

2 comments:

रूपसिंह चन्देल said...

टण्डन जी की गज़ल जैसा आनन्द कविताएं नहीं दे पायीं. मेरा विश्वास है कि वह एक अच्छे गज़लकार हैं और उन्हें वही लिखना चाहिए.

रूपसिंह चन्देल

तिलक राज कपूर said...

सीमित काफि़या प्रयोग की ग़ज़ल के भाव अच्‍छे लगे।
कविता तो होली की मस्‍ती में डूबी ही है।