मरने से पहले
मैं
बिखर जाने से पहले
जीना चाहता हूँ
फूल भर जिन्दगी
महकाना चाहता हूँ
सुवास अपनी
मैं
हवाओं में विलीन होने से पहले
हंसना चाहता हूँ
उन्मुक्त हँसी भर कर
फेफड़े में
शुद्ध प्राणवायु
मैं
नष्ट होने से पहले
चूमना चाहता हूँ
एक जोडी पवित्र होंठ
तृप्त होने तक
मैं
शरीर छोड़ने से पहले
स्वीकारना चाहता हूँ
अपराध अपने
ताकि
रहे आत्मा बोझविहीन
मैं
चेतना शून्य होने से पहले
सोना चाहता हूँ
रात भर
इत्मीनान से
ताकि न रहे उनींदापन
सच तो
यह है कि
मैं
मरना नहीं चाहता हूँ
मरने से पहले.
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स्त्री
स्त्री
तुम जा रही हो
लकड़ी चुनने या कि रोपने जंगल
स्त्री
तुम जा रही हो बोने सुख
या कि रखने बुनियाद
स्त्री
तुम पछीट रही हो आसमान
या कि गूँथ रही हो धरती
स्त्री
तुम काँधे पर ढ़ो रही हो दुनिया
या कि तौल रही हो
आदमी की नीयत
स्त्री
तुम तराश रही हो मूर्ति
या कि गर्भ में मानव
स्त्री
तुम विचर रही हो अन्तरिक्ष में
या कि समुद्र तले
स्त्री
तुम रही हो चार कदम आगे
या कि हो हमकदम
स्त्री
तुम बहा रही हो नयन से स्नेह
या कि आँचल से अमृत
स्त्री
तुम इस दुनिया में
या कि ब्रह्मांड में जहां भी
जिस रूप में हो
मैं तुमसे प्रेम करता हूँ.
####
प्रेम के कुछ क्षण
जैसे
एक गिलहरी
अपने भोजन के बहाने
छुपाकर भूल जाती है तमाम बीज मिट्टी में
ताकि कड़े दिनों में आएं काम
मैं भूल
जाना चाहता हूँ बोकर
प्रेम के कुछ क्षण
यहाँ-वहां
ताकि
उदास होने लगूँ
जब इस नश्वर दुनिया से
तब
जी सकूं
उनके लिए .
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१३नवम्बर,१९५८,मिसरोद,भोपाल.म.प्र.में जन्म.
शैक्षिक संस्था एकलव्य.भोपाल में १९८२से २००८ तक कार्यरत .चकमक,गुल्लक,पलाश,
प्रारंभ का संपादन.नालंदा,लखनऊ संस्था हेतु बच्चों के लिए ३० चित्रकथाओं का विकास
एवं सम्पादन.आजकल अजीमप्रेमजी विश्वविधालय,बंगलोर के स्रोत्र केंद्र में टीचर्स आफ
इंडिया पोर्टल में हिंदी संपादक.
email-utsahi@gmail.com
mobile: 09731788446
शैक्षिक संस्था एकलव्य.भोपाल में १९८२से २००८ तक कार्यरत .चकमक,गुल्लक,पलाश,
प्रारंभ का संपादन.नालंदा,लखनऊ संस्था हेतु बच्चों के लिए ३० चित्रकथाओं का विकास
एवं सम्पादन.आजकल अजीमप्रेमजी विश्वविधालय,बंगलोर के स्रोत्र केंद्र में टीचर्स आफ
इंडिया पोर्टल में हिंदी संपादक.
email-utsahi@gmail.com
mobile: 09731788446
5 comments:
भाई अशोक, तुमने जो राजेश उत्साही जी की कविताएं अपने ब्लॉग पर लगाई हैं, नि:संदेह बहुत ही अच्छी कविताएं हैं। जब मैं उनकी कविता पुस्तक "वह जो शेष है" पढ़ रहा था तो मैंने भी ये कविताएं टिक की थीं यानी मुझे बेहद पसंद आई थीं…संग्रह में और भी कई ऐसी कविताएं हैं जो पठनीय हैं और मन को अच्छी लगती हैं।
शुक्रिया अशोक जी। आपका चयन एकदम सटीक है।
राजेश जी की लाजवाब रचनाएँ पढवाने का शुक्रिया सर.
सादर.
अनु
उत्साही जी की कवितायेँ यहाँ देखकर बहुत ही खुशी हुई |उनकी पुस्तक -वह जो शेष है मैंने भी पढ़ी है |अधिकांश कवितायेँ सहज सरल बहती नदिया की तरह हैं जो सहज ही सुधी पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं |
very nice
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