Sunday, 13 September 2009

इला प्रसाद की कविताएँ

अनुभव

जिस- जिस से पाया है,
उनको मैं जानती हूँ।
जिन दरों पर सर झुकाया,
उनको पहचानती हूँ
इससे परे भी होगी दुनिया
जीवन , विश्वास , आस्था , मूल्य
मैं उनको नहीं जानती
और मेरे इस न जानने से
कहीं कुछ भी कम नहीं होता
न मेरे लिए
न उनके लिए
जीवन वही और उतना ही है
जितना अनुभवों से बना है।


अनुभव (२)

मेरे अनुभवों का संसार
कितना बड़ा या छोटा है
उससे तुम्हें क्या?
उसकी सुंदरता - कुरूपता
गहराई या भिन्नता
कुछ भी मायने रखती क्या
अगर उससे उपजा सच
यूँ शब्दों में ढलकर
तुमतक न पहुँचता??



झारखंड की राजधानी राँची में जन्म। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से सी. एस. आई. आर. की रिसर्च फ़ेलॊशिप के अन्तर्गत भौतिकी(माइक्रोइलेक्ट्रानिक्स) में पी.एच. डी एवं आई आई टी मुम्बई में सी एस आई आर की ही शॊध वृत्ति पर कुछ वर्षों तक शोध कार्य । राष्ट्रीय एवं अन्तर-राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में शोध पत्र प्रकाशित । भौतिकी विषय से जुड़ी राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय कार्यशालाओं/ सम्मेलनों में भागीदारी एवं शोध पत्र का प्रकाशन/प्रस्तुतीकरण।कुछ समय अमेरिका के कालेजों में अध्यापन।